The Kerala Minister’s Saga: A Marathi Rendition of Mumbai’s Crime Underworld – Hindi Version special 26 true story

The Kerala Minister’s Saga 

              75 वर्षीय व्यक्ति ‘के नारायणन‘ अपने एक हट्टे-कट्टे अंगरक्षक का हाथ पकड़कर बंगले की हर सीढ़ी उतर रहे थे, तभी उन्होंने एसीपी नुंबी और कमांडर तम्बी दोनों को अपनी कार के पास हंसते हुए देखा। जैसे ही ‘के नारायणन’ उनके पास आ रहे थे तभी, उन्होंने सुना, “वह अब तक एक politician बन गए होंगे!” एसीपी नुंबी ने तंबी का हाथ पर जोर से ताली मार के बोला , और वे दोनों जोर से हंसने लगे। तभी जब उन्होंने सामने से ‘के नारायणन’ को आते देखा तो उन्होंने अपनी हंसी रोक दी और ‘के नारायणन’ को सॅल्यूट किया। तभी कमांडर तम्बी ने कार का दरवाज़ा खोला। जब ‘के नारायणन’ कार के अंदर बैठे, तो ताम्बी उनके पास बैठे, एसीपी नुंबी ने दूसरी तरफ का दरवाजा खोला और ‘के नारायणन’ के दूसरी तरफ बैठ गए और जो अंगरक्षक  उन्हें हाथ से लेकर आया, वह ड्राइवर के पास बैठ गया।

           ड्राइवर ने कार स्टार्ट की और नारायणन, नुम्बी और ताम्बी को बताया,”,”What is the joke about? I heard you were talking about a politician, I also want to know what joke you made about a politician?”

                  ” Not joking, let it go,” तम्बी ने मुस्कुराते हुए कहा।

                  “Why not  ? मैंने आपको यह कहते हुए सुना, कि वह अब तक एक राजनेता बन चुका होगा और आप दोनो  ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। मैं भी सुनना चाहता हूं कि राजनेताओं के बारे में यह कैसी कॉमेडी है! “के नारायणन

             “Nothing special,इस ACP नुम्बी ने कल पकड़ी गई डकैती का मामला बताया,” तंबी ने चारों ओर देखते हुए कहा।

                   “नम्बि?” नारायणन ने नुम्बी की ओर देखते हुए कहा लेकिन नुम्बी का नारायणन और तंबी की बातों पर ध्यान नहीं था। वह आंखों में तेल डाल कर कार के बाहर की हर हरकत पर नजर रख रहा था. लेकिन नारायणन ने उसे फिर से कंधे पर थपथपाया और उससे पूछा, “नुम्बी, तुम क्या कह रहे हो?”

                     “आँ, क्या हुआ सर?” नुम्बी ने नारायणन की ओर देखा और कहा, “Sorry सर, मैं बिझी था, मुझे नहीं पता कि आप दोनों क्या बात कर रहे थे।”

              “तंबी ने कहा कि आप दोनों एक डकैती के मामले के बारे में बात कर रहे थे जो आपने कल पकड़ा था और हंस रहे थे। मुझे बताओ वह मामला क्या था? और राजनेता का इससे क्या संबंध है?” नारायणन।

                “Politician? उन्हें कल के मामले से क्या लेना-देना?”, नुम्बी।  

            “तो आप क्या कह रहे थे? कि वह अब एक राजनेता होगा और जोर-जोर से हंसने लगा।” नारायणन.

            “नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मेरा मतलब है कि राजनेता का उस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। मैं अभी बिझी  हूं। आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। हमें हर तरफ नजर रखनी होगी। अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।” नुम्बी ने बात टालने के लिए बात की

               नारायणन ने आवाज चढते  हुए कहा, “आप निगरानी रखने का मेरा सुरक्षा कार्य जारी रख सकते हैं, मैं सिर्फ उस politician का चुटकुला सुनना चाहता हूं। वह चुटकुला बताओ।”

            तभी नुम्बी भी बेबस हो गया और कहने लगा….

              “कल दोपहर, पुलिस स्टेशन को एक ज्वेलरी की दुकान से फोन आया। तीन महिलाएं और एक पुरुष उनके ज्वेलरी शो रूम में आए। चारों ने खुद को क्राईम ब्रॅन्च अधिकारी होने का दावा किया और 5 लाख रुपये की मांग की।ज्वेलरी शो रूम के मालिक ने उनसे आईडी कार्ड मांगा और उन्होंने तुरंत जब्ती दस्तावेजों के साथ आईडी कार्ड भी दिखाया। हालांकि, जब दुकान मालिक ने सत्यापन के लिए पुलिस स्टेशन को फोन किया, तो पुलिस दुकान पर पहुंची और 4 नकली सीबीआई अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया।उनके पास से फर्जी पहचान पत्र और दस्तावेज बरामद किये गये. जेल में डालने के बाद जब उनसे पुलिस स्टेशन में पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उन्हें ये आइडिया अक्षय कुमार की फिल्म स्पेशल 26 से मिला था.”

                    “तो politician का इससे क्या लेना-देना है?” नारायणन ने फिर वही सवाल पूछा.

                     “नहीं, इसका राजनीति, राजनेताओं से कोई लेना-देना नहीं है, हम तो बस इसी केस के बारे में बात कर रहे थे।” यह बोल के  नुम्बी ने अपना काम फिर से शुरू कर दिया। लेकिन नारायणन ने फिर पूछा, “लेकिन आप तो कह रहे थे कि ‘वह अब राजनेता बन गए होंगे!’ और ज़ोर से हंसते हुए मैंने इसे अपने कानों से सुना। पहले मुझे वह चुटकुला सुनाओ।”

                           “कुछ नहीं था सर, मेरा मतलब है कि हम ऐसा कुछ नहीं कहना चाहते थे,” नुम्बी फिर टालने लगा, लेकिन जब नारायणन ने फिर से ज़ोर दिया, तो नुम्बी ने बोलना जारी रखा… 

 

                      “कल, जब चारों fraud को जेल में डाला गया और पूछताछ की गई, तो उन्होंने कहा कि उन्होंने स्पेशल 26 movie  देखा था। इसके बाद, उन्होंने नकली सीबीआई अधिकारियों के रूप में पेश होने और एक jewelry की दुकान पर raid मारने का फैसला किया, जैसा कि movie में दिखाया गया है।Nonsense, अगर इसे कॉपी करना था, तो इसे एक सुपरहिट movie और आज के समय की कहानी से कॉपी करना था।” 

                        “तो? वह कौन सी फिल्म थी? मैं हिंदी फिल्मों के बारे में ज्यादा नहीं जानता। मैं हमेशा तेलुगु, कन्नड़, मलयालम फिल्में देखता हूं। मुझे नहीं पता कि आप किस फिल्म के बारे में बात कर रहे हैं। क्या वह flop film थी?” नारायणन ने अपनी भौंहें ऊपर उठाईं और आश्चर्य से कहा।

                    “बिल्कुल फ्लॉप नहीं, लेकिन औसत।” नम्बि 

                     “और आप उसकी कहानी के बारे में क्या कह रहे थे? वह आज की कहानी की नकल करना चाहता था। कुछ इस तरह, उस फिल्म की कहानी क्या है?”

                     “स्पेशल 26 एक true story पर आधारित है।”नुंबी

                     “कौन सी सच्ची घटना? कब घटित हुई?” नारायणन ने उत्सुकता से पूछा।

                     “19 मार्च 1987 को मुंबई में एक jewelry  शोरूम में डकैती।” नम्बि.

 

                     नारायणन ने अधीरता से पूछा, “19 मार्च, 1987? वह सच्ची कहानी क्या थी? मुझे जल्दी बताओ, मुझे वह सच्ची कहानी सुनने में ज्यादा दिलचस्पी है। मैं फिल्म के बारे में कुछ भी नहीं सुनना चाहता।”

                       “1987 में मुंबई में त्रिभुवनदास भीमजी ज़वेरी ज्वैलर्स शोरूम था जो आज भी है। मुंबई के बड़े और अमीर लोग उनकी दुकान से ज्वेलरी खरीदते हे । यह मुंबई का एक प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध ज्वेलरी शोरूम है। ऐसा शोरूम केवल उस समय एक फर्जी CBI ऑफिसर द्वारा लूट लिया गया।उस समय उसने  जो  प्लॅनिंग बनाई थी वह बहुत चक्राने  वाली थी। आज कहा जा रहा है कि  पुलिस ने कई सालों तक जांच की. पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए कई लोगों से पूछताछ की, दुबई तक मुंबई पुलिस की एक टीम,और हमारे देश के केरल तक गई, लेकिन फिर भी पुलिस चोर को नहीं पकड़ पाई। इसे एक PERFECT ROBBERY ,PERFECT THEFT , PERFECT CRIME का नाम भी पुलिस ने ही बताया था. “नम्बि

                   “क्या कह रहे हो! खुद्द पोलीस इसे एक PERFECT ROBBERY ,PERFECT THEFT , PERFECT CRIME बोलते है! “

                    “हां लेकिन कल पकड़े गए उन 4 stupid FRAUD ने इसी आइडिया का इस्तेमाल करके एक ज्वेलरी शोरूम को लूटने की कोशिश की थी।”यह बोल के नुंबी ने नारायणन को अपने मोबाइल पर ज्वेलरी शॉप का CCTV फुटेज दिखाया और कहा “37 साल पहले चोरी करने का आइडिया। आज  संभव है क्या ?”

                     “संभव नहीं है, आज उन्हें एहसास हो जाना चाहिए था कि वे किसी कैमरे में कैद हो जाएंगे। आजकल ऐसी डकैती करना मुश्किल है। टेकनॉलॉजि ने अपराध की दुनिया में भी क्रांति ला दी है।” तम्बी ने बीच में कहा।

                             “समझ गया, अब डिस्टर्ब मत करो,” नारायणन ने ताम्बी को  छोटासा चाटा मारा और कहा, “नुम्बी, मुझे 1987 का मामला बताओ।”

                            नुंबी आगे बोलने लगा,”१९ मार्च १९८७ को करीब साढ़े तीन बजे का वक़्त था |  अरविंद  इनामदार जो उस वक़्त महाराष्ट्र में क्राइम ब्रांच में पोस्टेड थे, उन के पास त्रिभुवनदास भीमजी ज़वेरी ज्वेलर्स के ओनर का  फ़ोन आया, के हमारे शॉप पे सीबीआई की रेड पड़ी और सीबीआई का अफसर हमारे यहाँ से बहोत सारे जेवर और कॅश ले कर गया पर उसने हमे कोई रिसीप्ट नहीं दी | जब अरविंद  इनामदार ने  यह सुना तो  वह चौक गए |  उन्हें ऐसा लगा के इतने बड़े शॉप पर रेड डाली और पुलिस को किसी ने इन्फॉर्म भी नहीं किया | आम तौर पे ऐसे रेड डालनी होती हे तो सीबीआई, लोकल पुलिस को इन्फॉर्म किया जाता है| और उनकी मद्त ले जाती है  | और वह बिना स्लिप पर्ची के इतने सारे  पैसे लेकर चला गया,तो उन के कान खड़े हो गए | फौरन उन्होंने अपनी टीम को भेजा,जब टीम वहां गयी  तो पूछताछ की, तो शॉप ओनर ने  बताया की थोड़ी देर पहले यहाँ एक सीबीआई का अफसर आया था |.जब पोलीस ने पहले उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि उसका नाम मोहन सिंह है.और इस मोहन सिंह के नाम के अलावा पुलिस के पास अब तक उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. और यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सका कि उनका असली नाम मोहन सिंह है | उसने बकायदा गवर्नमेंट के सील वाले पेपर दिखाए और अपने साथ आये २६ लोगों के ग्रुप को  रेड करने का ऑर्डर दिया | क्यों के दुकान के मालिक पढ़े लिखे थे इस लिए उन्हें मालुम था क रेड क्या होती है वगैरा वगेरा  | इतना के मालिक के पास एक लयसेन्सी रिवाल्वर थी वह भी उसने अपने कब्जे मैं लिया | उस  का हाव्-भाव, बात करने का तरीका  बिलकुल एक सीबीआई अफसर के जैसा ही था, इस लिए किसी को शक ही भी नहीं हुआ | और उसने बताया के उन्हें कुछ इनफार्मेशन मिली है,हमें ऑर्डर मिली है , इस लिए हमे तलाशी लेनी है | शटर गिरा दीजिये, अंदर से कोई बाहर ना जाए,और बाहर का कोई अंदर न आ जाये,इस के बाद करीब ४५ मिनट तक उसने तलाशी ली और अलग-अलग पॉलीथिन बैग मैं उसने ज्वेलरी डाली उस पर पेपर लगाया और उस पर सील लगाया, और अपने साथ ले कर  जाने लगा तो दुकान के मालिक ने उन से पूछा के आप इतना सामान लेकर जा रहे है तो उस की  कोई रिसिप्ट तो दे दीजिये | तो वह  घूरने लगा और बोला के मिल जायेगा, मतलब  उस ने  ऐसा रॉब दिखाया के उस के बाद शॉप ऑनर खामोश हो गया | और वह सीधा बाहर निकल गया | तब तक किसी को कोई भी  शक नहीं हुआ | आधे घंटे के बाद वह वापस नहीं आया तोह शॉप ओनर ने पुलिस मैं फोन किया |

                          दुकान मालिक से पूछताछ के बाद पुलिस टीम बाहर आई तो पता चला कि बाहर एक प्राइवेट बस खड़ी थी और उसमें 20/25 महिला-पुरुष सवार थे 

 


 दुकान के मालिक और बाकी स्टाफ को बस दिखाने के बाद उन्होंने कहा कि यह वही  बस थी,और यह 26 लोगों का ग्रुप  था, जिसमें सीबीआई अधिकारी आए थे और इन लोगों ने दुकान के सभी ज्वेलरी  को छोटी-छोटी प्लास्टिक  थैलीयों में भर दिया, और ऊस पे कागज चिपका कर सीलबंद कर दिया । फिर उसने ऊन छोटी-छोटी प्लास्टिक थैलीयों को एक बड़े बॅग  में भर दिया और फिर वह बॅग अपने मालिक को दे दिया। उसी समय दुकान मालिक ने उनसे रसीद के बारे में पूछा.”

                 नारायणन ने बीच में पूछा, “तब  उसी बस में वह सीबीआई अधिकारी होगा, और उसके पास वह ज्वेलरी  बैग भी होगी, याने वह वास्तव में एक सीबीआई अधिकारी था!”

                    “यही सोचकर पुलिस और दुकान मालिक बस में चढ़ गए। लेकिन वहां कोई भी सीबीआई अधिकारी नहीं था! टीम के बाकी सभी 26 सदस्य और ड्राइवर बस में थे। तभी पुलिस ने उनमें से एक से पूछा, “आपका team leader  कहां है” ?”तो उन्होंने कहा कि दुकानदार ने रसीद मांगी है, और उसे लेने के लिए थाने जा रहा हूं. इसलिए उसने यहां से टैक्सी ली और चला गया। तो क्या आप वह रसीद लाए हे? ये सब सुनकर पुलिस हैरान रह गई .इसके बाद 26 लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई. और इससे जो कहानी सामने आई वह ऐसी थी …”

                “कैसी थी?” नारायणन ने फिर उत्सुकता से पूछा।

                 जब कहानी समझ में आई तो पुलिस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उन 26 लोगों से पूछताछ के बाद पता चला कि वे आज के आज  CBI अधिकारी बन गए हैं. सभी के पास CBI के आईडी कार्ड थे. 17 अप्रैल 1987 को उनके चयन से पहले यानी दुकान में डकैती से 2 दिन पहले। मोहन सिंह ने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक विज्ञापन दिया था जिसमें कहा गया था –

 

 

                 Require dynamic graduate. for the intelligent officer post.

उस विज्ञापन के नीचे लिखा था-interview venue and timing-ताज इंटरकॉन्टिनेंटल हॉटेल 10a .m . to 5 p . m 

                     टाइम्स ऑफ इंडिया में विज्ञापन… नौकरी का ऑफर… वह भी इंटेलिजेंट ऑफिसर के लिए! एक-एक कर candidate  ताज होटल पहुंचे। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक सभी का इंटरव्यू लिया गया । इंटरव्यू भी ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि वो सारे सवाल पूछे गए जो आम तौर पर एक ख़ुफ़िया अधिकारी से पूछे जाते हैं, यानी आप सीबीआई में क्यों शामिल हो रहे हैं? तुम कैसे देशभक्त हो? आप सीबीआई में शामिल होकर क्या करेंगे? यानी पुलिस बल के लिए सभी जरूरी सवाल पूछे गए. इसके बाद परिणाम घोषित किया गया। कुल 26 लोगों का चयन किया गया. इसलिए ऊस  फिल्म का नाम स्पेशल 26 रखा गया लेकिन फिल्म की कहानी अलग थी । उन कुल 26 लोगों को अगले दिन यानि 19 मार्च 1987 को सुबह 11 बजे ताज इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में बुलाया गया। मोहन सिंह ने सभी को सीबीआई का आईडी कार्ड दिया. सीबीआई का आईडी कार्ड पाकर सभी बहुत खुश हुए। बहुत आसानी से मिल गयी नौकरी! वह भी सरकार के एक प्रतिष्ठित संस्थान में है! आईडी कार्ड मिलने के बाद मोहन सिंह ने उनसे कहा कि आज वह मुंबई में एक दुकान पर छापा मारने जाना चाहता है । उसके लिए मोहन सिंह ने ताज होटल से एक लग्जरी बस बुक की. और वह बस त्रिभुवन दास भीमजी झवेरी ज्वेलरी की दुकान के सामने रुकी 

                    बस दोपहर 2:25 बजे त्रिभुवनदास ज्वेलरी शॉप पर पहुंची। मोहन सिंह सबसे पहले बस से उतरे, उनके बाद 26 लोग उतरे और वे सभी ज्वेलरी शोरूम में इस तरह से दाखिल हुए जैसे सेना के जवानों के एक समूह ने उन पर घात लगाकर हमला किया हो। अंदर आने के बाद  मोहन सिंह ने शोरूम के मालिक प्रताप झवेरी को सीबीआई का आईडी कार्ड और सरकारी सीलबंद लाल कागज इस तरह दिखाया कि, किसी सिपाही ने अपनी राइफल उसके सिर पर रख दी, कागज देखते ही मोहन सिंह ने प्रताप झवेरी से उसकी लाइसेंसी रिवॉल्वर  मांगी, और प्रताप ने भी एक योद्धा की तरह आत्मसमर्पण करते हुए उन्हें वह बंदूक दे दी।प्रताप वेरी को उनकी बातों और उनके गुस्से भरे भाव से यकीन हो गया कि वह एक सीबीआई अधिकारी हैं। मोहन सिंह ने दुकान में मौजूद अन्य 26 लोगों को शटर बंद करने के लिए कहा,बाद में ऊन २६ लोगो ने प्रत्येक आभूषण को उठाया और उसे एक छोटे-छोटे प्लास्टिक कि थैली  में पैक कर दिया और उसे सील कर दिया। उसने ऐसा करने के लिए अपने साथ आए 26 लोगों से कहा, सभी गहने,और दुकान कि नकदी एकत्र करने के बाद, उसने उन्हें एक बैग में  रखने के लिए कहा।  वह सिर्फ आदेश दे रहा था और बाकी 26 भी उसके सभी आदेशो का पालन कर रहे थे । प्रताप वेरी  ने पुलिस को बताया कि उसका बोलने  का अंदाज ऐसा था कि वे उनसे बहस न कर सकें। उन्होंने अपने संपर्क के अन्य व्यापारियों से भी सुना था, कि दुकान पर इसी तरह से छापा मारा जाता है। इसलिए उन्हें एक बार भी यह महसूस नहीं हुआ कि उन्हें लूटा जा रहा है। जब वह आभूषण और नकदी से भरा बैग ले जाने लगा तभी प्रताप वेरी ने रसीद मांगी। लेकिन उस वक्त भी उन्होंने कुछ ऐसे ही तेवर दिखाए और कहा, कि वो रसीद लेकर आएंगे,फिर प्रताप वेरी तुरंत चुप हो गए।” इतना कहकर नुंबी ने अपने पास मौजूद पानी की बोतल का ढक्कन खोला और उसमें से पानी पीना शुरू कर दिया।

     फिर तुरंत नारायणन ने पूछा, “उसने उस बैग में कुल कितने मूल्य के आभूषण और नकदी रखी थी?”             

          “वास्तव में, रकम कितनी थी, इसका अभी पता नहीं है। बताया जा रहा है कि उसने बैग में पच्चीस से तीन लाख कैश और ढाई से साढ़े तीन करोड  के गहने भरे थे। सही रकम अभी पता नहीं चल पाई है, क्योंकि दुकान मालिक नहीं बता सके। ” पीने लगा

 

            “तो पुलिस ने उसे ढूंढने के लिए क्या किया?” नारायणन

             “पुलिस ने 26 लोगों, ज्वेलरी शॉप ओनर, होटल के स्टाफ द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर एक स्केच आर्टिस्ट से उसका एक स्केच तैयार किया। फिर स्केच को उस एरिया के टैक्सी चालको को दिखाया गया।  जिस टैक्सी में वह बैठा था, उस टैक्सी के चालकने उसकी पहचान की और कहा कि उसने मुझे पुलिस स्टेशन ले जाने के लिए कहा, लेकिन कुछ दूरी के बाद एक सिग्नल के पास ट्रैफिक जाम था, उसने कहा कि मुझे देर हो जाएगी इसलिए उसने मीटर के हिसाब से पैसे दिया और टॅक्सी से उतर के पैदल चला गया वो गया ……!   फिर वह कहां गया, कोई नहीं जानता !  कि उसे धरती खा गयी या आसमान निगल गया।अब 37 साल हो जाएंगे.ज्वैलरी शॉप के मालिक, होटल स्टाफ समेत,बाकी 26 लोगों ने जो ब्यौरा दिया है, उसके मुताबिक उस वक्त यानी 1987 में उसकी उम्र 40 साल रही होगी. आज 37 साल बाद यानि 40+37 यानि आपके जैसा 77 साल का वरिष्ठ नागरिक होगा। और अब वह जहां भी होगा और अगर जिंदा भी होगा तो कानून और पुलिस पर हंस रहा होगा और मन ही मन कह रहा होगा कि देखो, मैंने इतनी बड़ी चोरी की है और आज तक किसी ने हाथ भी  नहीं लगाया मुझे!” इतना कहने के बाद नुम्बी ने बोतल में बचा हुआ पानी ख़त्म कर दिया।

              “तो राजनेता का इन सब से क्या लेना-देना है? मेरा मतलब है, क्या आपको लगता है कि वह अब राजनेता बन गया है?और तुमने कहा कि मेरे जैसा 77 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक, तुम्हे क्या मुझ पर संदेह है? क्योंकि मैं भी पिछले 37 साल से राजनीति में सक्रिय हूं. मैं “चिपलकट्टी” नामक इस जिले के मेयर के पद पर कार्यरत हूं, आज तक मेरी शादी नहीं हुई है और मैंने इस जिले के विकास के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित किया है। यदि आपको संदेह है तो, यह तम्बी सिर्फ मेरा अंगरक्षक नहीं है, उसके पास मेरा पूरा फायनान्शिअल रिकॉर्ड है। उसके पिता भी मेरा काम देखते थे। वह मेरा दाहिना हाथ था.” नारायणन ने गुस्से से पूछा।” नारायणन ने गुस्से से पूछा।

           “लेकिन सर, क्या मैंने कभी आपका नाम बताया? या कभी कहा, ‘आप ही चोर होगे?’

           उसी दौरान उनकी कार अस्पताल के पास रुकी. नुम्बी और ताम्बी कार से बाहर निकले और के नारायणन को कार से उतरने में मदद करने लगे। नारायणन भी दोनों हाथ पकड़कर कार से बाहर आए और नीचे उतरने के बाद नारायणन ने तुरंत नुंबी को डांटा, “तुमने डायरेक्टली  तो नहीं लेकिन इंडिरेक्टली रूप से मुझे ताना मारा।” इतना कहकर नारायणन डॉक्टर के केबिन कि तरफ चले गए। नुंबी उन्हें समजाने के लिए बात करने जा रहे थे लेकिन सुरक्षा का काम नारायणन के पास था, इसलिए उसने चुपचाप उनकी बात सुनी और सबसे पहले उनके पीछे-पीछे चलकर डॉक्टर के केबिन का दरवाज़ा खोलकर सबसे पहले अंदर दाखिल हुए। आंतरिक केबिन की जाँच करने के बाद, नारायणन जी का हाथ पकड़ा और उसे  डॉक्टर के सामने बैठाया। तभी नुम्बी और तंबी दोनों बाहर आये और दरवाजे के बाहर खड़े हो गये।

        तब तम्बी ने कहा, “तुमने भी, आपने साहब से ऐसा कैसे कहा? साहब अब कितने गुस्से में हैं।”

        “सर गुस्से में थे, लेकिन मैंने देखा कि वह दिखावा कर रहे थे! मैंने  देखा था, जब वह मुझ पर चिल्ला रहे थे, तो वह गाल से गाल में हंस रहे थे।” नुम्बी ने इधर-उधर देखते हुए कहा।

         “कुछ मत कहो, साहब बहुत गुस्से में थे।”

         “ ये साहब कब से आपके जिले के मेयर हैं?” नम्बि ने अपना गाल खुजलाया और कहा..

          “मुझे नहीं पता। पिछले साल मेरे पिता के निधन के बाद मैंने उनकी जगह ले ली।”

            तभी के. नारायणन बाहर आये. उनके हाथ में डॉक्टर की रिपोर्ट की फाइल थी, साथ में उनका बटुआ भी था, उन्होंने उसे तंबी को देते हुए कहा, “मैं वॉशरूम जा रहा हूं, इसे अपने पास रखना।” बात करते समय नारायणन के चेहरे पर मुस्कान थी। वे रोक नाही पा राहे थे, नम्बि की पैनी नज़र ने यह देख लिया था। जैसे ही वे वॉशरूम में दाखिल हुए, तंबी और नंबी वॉशरूम के बाहर खड़े हो गए।

            अंदर जाने के बाद नारायणन को फिर से नुंबी के शब्द याद आए कि – ‘अब वह जहां भी है और अगर वह जीवित है, तो वह कानून और पुलिस पर हंस रहा होगा!’

         उस बात को याद करते ही नारायणन की हंसी छूट गई और वह जोर-जोर से हंसने लगे। तभी उन्हें नुम्बी के शब्द याद आए कि – ‘वह अब तक राजनेता बन गए होंगे!’ उसने मन में कहा…’नुम्बी, तुम ठीक जानते हो।’ तभी उनके सीने में तेज दर्द महसूस हुआ और वह दर्द से चिल्लाने लगे, उन्होंने तुरंत वॉशरूम का दरवाजा खोला. बाहर, नुम्बी और तम्बी ने नारायणन की हँसी की आवाज़ सुनी। वे हँसी की आवाज़ से भ्रमित हो गए। लेकिन तभी नारायणन ने दरवाज़ा खोला और दरवाज़ा तंबी के शरीर पर गिरा । नंबी ने तुरंत नर्स और डॉक्टर को बुलाया, वार्डबॉय तुरंत स्ट्रेचर लेकर आया और नारायणन को स्ट्रेचर पर ले गया और फिर बिस्तर पर लिटा दिया। तब तंबी ने नारायणन की फ़ाइल और बटुआ अपने हाथ में लेकर बेडसाइड टेबल पर रख दिया।

            जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है। लेकिन तुरंत इलाज मिलने से उनकी जान को खतरा नहीं है। लेकिन वे कोमा में हैं. कोमा से बाहर आने में कितने दिन लगेंगे ये कहना संभव नहीं है। तंबी, नुंबी और अन्य लोग नारायणन को देख रहे थे और डॉक्टर की बात सुन रहे थे। नुम्बी ने देखा कि बेहोश नारायणन के चेहरे पर मुस्कान थी। उनकी बंद आँखों की पलकें बीच-बीच मे थोडीसी हिल रही थीं।उस समय डॉक्टर ने एक लिस्ट दी और मेडिकल से सामान लाने को कहा. नुंबी ने तुरंत लिस्ट ले ली और बिना किसी को पता चले नारायणन का वॉलेट ले लिया।

                    इसे लेकर बाहर आने के बाद नुंबी सबसे पहले ज़ेरॉक्स की दुकान पर गया जहां उन्होंने नारायणन के वॉलेट से नारायणन के आधार कार्ड और पैन कार्ड का ज़ेरॉक्स लिया और फिर डॉक्टर द्वारा दी गई लिस्ट दिखाकर मेडिकल स्टोर से दवाएं लीं। अस्पताल पहुंचने के बाद, नुम्बी ने नारायणन का बटुआ वापस वहीं रख दिया, जहां वह था, और नर्स को दवा दी। उसी समय नाइट शिफ्ट ड्यूटी वाले कर्मचारी आये. नुंबी ने पूरा चार्ज नाइट शिफ्ट ड्यूटी स्टाफ को सौंप दिया और अपने घर चले गए।
                             घर आकर नुम्बी ने सबसे पहले इंटरनेट खोला। नारायणन का आधार कार्ड और पैन कार्ड नेट पर डाउनलोड किया गया। उसे याद आया कि 4 साल पहले जब वह पुलिस ट्रेनिंग के लिए मुंबई में था तो यह केस उसे  स्टडी  के लिए दिया गया था। उसने अपने  लैपटॉप में केस  का डिटेल  देने वाली फ़ाइल सेव्ह कर दि  थी । और उस के पास नारायणन के बारे में जानकारी वाली कुछ पत्रिकाएँ और न्यूजपेपर की कटिंग  थीं, जिन्हें उसने  सबसे पहले पढ़ा।
                                        नारायणन का जन्म वर्ष 1947 में दक्षिण भारत के केरल राज्य के चिपलकट्टी गाँव में हुआ था, उनका बचपन अत्यधिक गरीबी में बीता, 10/15 वर्ष की आयु में वे पैसे कमाने के लिए किसी दूर के शहर में चले गये। इसके बाद दिसंबर 1987 में वह चिपलकट्टी गांव वापस आ गये। उस समय उनके पास करोड़ों रुपए थे। तब उन्होंने बताया कि वह पिछले 20 साल से दुबई की एक कंपनी में काम कर रहे थे और उन्होंने वहां इतने पैसे बचाए थे लेकिन इसका कोई लिखित सबूत नहीं था। पत्रिकाओं में केवल ‘ उन्होंने कहा ‘ का उल्लेख किया गया था। लेकिन चिपलकट्टी गांव वापस आने के बाद उन्होंने अपने पास जमा करोड़ों रुपये चिपलकट्टी गांव के विकास में खर्च कर दिए, उन पैसों से उन्होंने गांव में आधुनिक सुविधाओं से युक्त स्कूल-कॉलेज और एक अस्पताल बनवाया। जो उत्पन्न हुआ उससे कुछ उद्योग शुरू किये गये। सड़कें, पुल बने, धीरे-धीरे चिपलकट्टी गांव एक आधुनिक जिले में तब्दील हो गया ।
                             नारायणन के काम की प्रशंसा करते हुए पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कई लेख छपे। लेकिन 1987 से पहले, वह दुबई में एक कंपनी में काम कर रहे थे, जिसका उल्लेख केवल एक पत्रिका में किया गया था, नुम्बी ऑनलाइन और लाइब्रेरी भी गए, उस समय के समाचार पत्र, पत्रिकाएँ पढ़ीं, नारायणन के रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों के बारे में पूछताछ की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली

                          इसके बाद नुम्बी ने अपने लैपटॉप में सेव फाइल खोली और उसमें 1987 में हुई चोरी की जांच किसने और कैसे की, इसका विवरण था। इस मामले कि जांच  उस वक्त के तेज-तर्रार अधिकारी डिप्टी पुलिस कमिश्नर एस. एम. मुशर्रफ़ को सोपी गायी । इस जांच के समय उन्हें सबसे पहले ताज इंटरकॉन्टिनेंटल होटल मिला जहां मोहन सिंह ठहरा  हुए था । दरअसल वह मोहन सिंह के नाम से रहता था, इसलिए इस मामले में उसका नाम मोहन सिंह लिखा गया। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उसका असली नाम मोहन सिंह था । इस कि वजाह यह थी कि उसने अपना पता त्रिवेन्द्रम केरल का बताया था। और उनसे मिलने वाले सभी लोगों ने कहा कि वह दक्षिण भारतीय लहजे में बात करता था । तो ये तो तय था कि वो दक्षिण भारतीय था । इसके बाद मुंबई पुलिस की टीम को केरल भेजा गया । जब पुलिस टीम ने केरल में बहुत खोजबीन की तो उन्हें एक संदिग्ध मिला – जॉर्ज ऑगस्टीन फर्नांडिस !

 

वह स्केच आर्टिस्ट द्वारा बनाए गए स्केच से थोड़ा सा मिलता जुलता था । नुम्बी के लैपटॉप स्क्रीन के ऊपर उसका एक स्केच और फर्नांडीस की एक तस्वीर थी। उनसे काफी देर तक पूछताछ की गई ।लेकिन बाद में पता चला कि वह एक छोटा-मोटा चोर था. 17/18/19 मार्च 1987 को जब चोरी हुई तब वह मुंबई में नहीं था । वह  केरल में हि  था । अनिच्छा से उसे छोडना    पड़ा। यानी वह एक  अकेली  गिरफ्तारी थी, लेकिन असफल रही! इसके बाद मुंबई पुलिस को एक और टीप  मिली कि वह दुबई में है। इसलिए मुंबई पुलिस की टीम दुबई गई. लेकिन वहां भी मुंबई पुलिस की टीम को कोई सफलता नहीं मिली । बाद में देश भर में इसी तरह की कई टीप मिलीं लेकिन मोहन सिंह या मोहन सिंह के नाम पर चोरी करने वाला कोई चोर नहीं मिला।

                     इसके बाद मुंबई पोलीस  ने उसे पकड़ने के लिए एक और प्लान बनाया. उसके चोरी करने के तरीके से एक बात तो साफ थी, कि उसे सीबीआई की छापेमारी के तरीकों की पूरी जानकारी थी। उसे  पता था कि सीबीआई छापे के लिए किन डॉक्युमेंट्स  की जरूरत है, उन्हें कैसे और कहां सील करना है। तब दो संभावनाएँ उत्पन्न हुईं। एक-मोहन सिंह खुद  सीबीआई में काम कर रहा  होगा  और काम करते-करते अचानक उसकी नियत बिगड गयी और ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिये वह एक असली सीबीआई अधिकारी हो कर भी  अपने  सिनिअर्स को अंधेरे में रख कर उसने एक नकली सीबीआई अधिकारी बन के फर्जी छापे मारे । इसलिए मुंबई पुलिस ने कई सीबीआई अधिकारियों की एक लिस्ट  बनाई। आज भी सीबीआई के पास 800 अधिकारी हैं । तो कोई बहुत बड़ी फोर्स नहीं है, तो 1987 में 300-400 अधिकारी होंगे. तो मुंबई पोलीस ने  मोहन सिंह का स्केच उनके फोटो के साथ जोड कर देखा । लेकिन मोहन सिंह से कोई चेहरा नहीं मिलता था । इसलिए पहली संभावना खारिज हो गई थी ।     
                  फिर एक और संभावना पर विचार किया गया कि वह किसी सीबीआई अधिकारी के संपर्क में होगा जो उसे सारी जानकारी दे रहा होगा । या फिर सीबीआई अधिकारी को पता ही नहीं होगा कि उनकी जानकारी का दुरुपयोग किया जा रहा है। इस दूसरी संभावना को ध्यान में रखते हुए सीबीआई अधिकारियों से पूछताछ की गई लेकिन  मुंबई पुलिस इस में भी असफल रही ।
 
               इसलिए आज भी इस केस की फाइल मुंबई पुलिस के कंप्यूटर में  PERFECT ROBBERY ,PERFECT THEFT , PERFECT CRIME इस नाम से सेव्ह है।
                   इस मैसेज को पढ़ने के बाद तंबी काफी गुस्से में परतें काटने लगा । और वह सीधे नुम्बी के घर आय और चिल्लाए, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे नारायणन साहब को चोर कहने की। तुम्हारा यहां तबादला हो गया है इसलिए तुम्हें पता नहीं चला। हमारे नारायणन साहब ने पिछले 37 वर्षों में चिपलाकट्टी गांव को एक जिले में बदल दिया है। अब वह अस्पताल में भर्ती हैं, अस्पताल के बाहर इस जिले का हर नागरिक उनके कोमा से बाहर आने का इंतजार कर रहा है, जिले के हर मंदिर में लाखों लोग उनके लिए पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
 
               और 1987 की उस डकैती के लिए आपको कौन सा बायोमेट्रिक सबूत मिला? क्या आप जानते भी हैं कि बायोमेट्रिक्स क्या होते हैं? डीएनए टेस्ट, आई रेटिना क्या होता है? किसी को 1987 में  डीएनए टेस्ट का D भी मालूम था क्या ?”
              ” सिर्फ ‘डीएनए टेस्ट’ हि बायोमेट्रिक प्रूफ नाही होता। यहां आओ मैं तुम्हें अपने लैपटॉप पर दिखाऊंगा कि और कौ-कौन से  बायोमेट्रिक प्रूफ  है।” नुम्बी ने ताम्बी को इशारा किया और उसे लैपटॉप स्क्रीन दिखाई।
             “यह नारायणन साहब का आधार कार्ड और पैन कार्ड है, मैं इसमें यह क्यूआर कोड खोलता हूं।” जब उसे खोला गया तो नारायणन के हाथ के पंजे के निशान दिखे। ” अब मोहन सिंह उर्फ ​​नारायणन साहब की उंगलियों के निशान देखो, जिन्होंने 1987 में एक ज्वेलरी शॉप  पर फर्जी छापा मारा था और अपने साथ मौजूद 26 लोगों को अपने हाथो से ID कार्ड दिए थे।” नुम्बी ने लैपटॉप स्क्रीन पर  एरो  से फिंगर प्रिंट की ओर इशारा किया।
              “तो? क्या  यह प्रिंट किस फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को दिखाया तुमने?”
 
             “अरे, तुम किस युग में जी रहे हो ? आज 2024 में, आपको फिंगर प्रिंट मिलाने  के लिए फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं है। देखो…” इसलिए उसने Google खोज पर एक लिंक पर क्लिक किया और दोनों के उंगलियों के निशान. की इमेजेस  डाउनलोड कीं, और तुरंत सामने स्क्रीन पर जवाब आया “मैच”।
 
              Require dynamic graduate ,जिसे  ने नारायणन ने 1987 में टाइम्स ऑफ इंडिया में विज्ञापन के लिए लिखा था, “केवल यही नहीं बल्कि इस चिट्ठी भी देखो”। चिट्ठी  डाउनलोड किया और दूसरी तरफ पैन कार्ड पर नारायणन के हस्ताक्षर भी डाउनलोड किये। उस्का भी  जवाब आया ‘मैच’|
 
             “ये 2 बायोमेट्रिक सबूत नारायणन सर को गिरफ्तार करने के लिए काफी हैं।” नुम्बी ने लैपटॉप बंद करते हुए कहा।
             जैसे ही वह तम्बी, नुम्बी से कुछ कहने ही वाला था, उसे किसी का फोन आया। फोन पर बातचीत सुनकर तंबी की आंखों में पानी आ गया और गला रुंध गया. मोबाइल फोन काटने के बाद उसने नम्बी से रुंधे हुए स्वर में कहा, “तुमने मेरे अलावा यह मैसेज और यह सबूत किसे दिखाया?”
            “किसी को भी नहीं, सबसे पहले तुमने ही दिखाया था।” नम्बि.
           “इसे मत दिखाओ, इसका कोई फायदा नहीं है। क्योंकि अभी फोन आया था, उसमें कहा गया था कि नारायणन सर का निधन हो गया है। बाहर इकट्ठा हुई जनता इतनी गुस्से में थी कि उन्होंने अस्पताल में तोड़फोड़ की। अब हमें नियंत्रण करने के लिए अस्पताल जाना होगा। मे अपने  मोबाइल फोन मैं से तुम्हारा मैसेज डिलीट कर देता हूं और तुम भी अपने मोबाईल से मेसेज डिलीट कर देना । अगर गलती से भी यह मैसेज किसी और के पास चला गया, तो वह तुम्हें बर्बाद कर देंगे।” तम्बी ने अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा।
           अगले खतरे का एहसास होने पर नुम्बी ने भी अपना मन बदल लिया और मैसेज डिलीट कर के  ताम्बी के पीछे-पीछे  अस्पताल चला गया।   
 
        .                                            समाप्त    
 
 
 
 
 

 

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