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“तो हमारी कंपनी ने यह नई शॉपिंग साइट लॉन्च की है। यह खास तौर पर गाँवों में रहने वाली छोटी महिला उद्यमियों के लिए है। यह देश के कोने-कोने तक अपने छोटे-छोटे व्यावसायिक उत्पादों को पहुँचाने का एक संचार माध्यम है। तो अगर आपके संपर्क में ऐसी कोई छोटी महिला उद्यमी है, तो उसके व्यवसाय की पूरी जानकारी अपनी साइट पर प्रकाशित करें और उस महिला के साथ अपना और अपनी कंपनी का प्रचार करें!” यह कहकर बावकर सर ने अपना भाषण समाप्त किया और केबिन से बाहर चले गए।

लेकिन बावकर साहब के भाषण का आखिरी वाक्य – ‘उस महिला के साथ अपना और अपनी कंपनी का प्रचार करो!’ दिशा के दिमाग में एक नया विचार कौंधा, और वह उत्साहित हो गई। उस उत्साहित विचार के साथ, वह भी बाकी कर्मचारियों के साथ केबिन से बाहर चली गई। और तुरंत अपने पति श्रीकांत को मोबाइल पर फ़ोन किया, “शिक्या, क्या तुम्हें वो सुलू आंटी याद हैं जो तिजगाँव में हथकरघा के काम में कुशल थीं?”
“हाँ, मुझे याद है, लेकिन अगर कोई बहुत ज़रूरी काम हो, तो मुझे फ़ोन करना। मैं अभी एक ज़रूरी मीटिंग में हूँ।” श्रीकांत।
“ठीक है, शाम को घर पहुँचकर बात करेंगे।” यह कहकर दिशा ने भी फ़ोन रख दिया।

बाद में, दिशा ने ऑफ़िस का अपना रोज़ाना का काम निपटाया और शाम 7 बजे घर आ गई। लेकिन श्रीकांत नहीं आया था। फ़ोन करने के बाद, उसने कहा कि ऑफ़िस में बहुत काम है, इसलिए वह फ़ोन पर ज़्यादा बात नहीं कर सकता और उसे घर आने में कम से कम दो घंटे देर हो जाएगी, इसलिए खाना खाकर सो जाओ, कल बात करेंगे। यह सुनकर दिशा बहुत निराश हो गई। श्रीकांत का दो घंटे इंतज़ार करना दो दिन जैसा लग रहा था। उन दो घंटों में उसने खाना बनाया और प्लेटें डाइनिंग टेबल पर रखकर इंतज़ार करती रही। एक बार फिर उसने श्रीकांत को फ़ोन किया, लेकिन उसने फ़ोन नहीं उठाया। यह सोचकर कि शायद वह यात्रा पर होगा, उसने फ़ोन रख दिया और चुपचाप खाना खाने लगी। खाने के बाद, उसने टेबल साफ़ की और अपनी खाली प्लेट सिंक में रख दी। उसने श्रीकांत का खाना ढक दिया। दस बजने के बावजूद, श्रीकांत नहीं आया था। दिशा को भी,बहुत नींद आ रही थी। इसलिए बिस्तर पर लेटते ही उसे नींद आ गई।
उसके बाद, देर रात कब श्रीकांत घर आया और कब खाना खाकर सो गया, दिशा को कुछ पता ही नहीं चला। दिशा को सुबह 5 बजे उठना था क्योंकि उसका ऑफिस सुबह जल्दी था। जब उसने पास में देखा, तो उसने श्रीकांत को अपने बगल में खर्राटे लेते देखा। उसे एहसास हुआ कि श्रीकांत सुबह 8 बजे से पहले नहीं उठेगा और तब तक दिशा तैयार होकर ऑफिस जा रही होगी। इसका मतलब था कि वह अब भी श्रीकांत से बात नहीं कर पाएगी। इसलिए उसने सोचा कि उसे श्रीकांत को जगाकर उससे बात करनी चाहिए।

“शिक्या, उठो,” दिशा ने श्रीकांत को हिलाते हुए कहा।
“क्या बात है, मुझे सोने दो, मैं कल रात बहुत देर से सोया था । अब मुझे सोने दो,” श्रीकांत झुंझलाकर दूसरी तरफ़ मुड़ा और सो गया।
“शिक्या, उठो, एक बार मेरी बात सुनो और फिर सो जाओ”, लेकिन श्रीकांत के यह सुनने से पहले ही फिर से सो गया और खर्राटे लेने लगा।
यह देखकर दिशा को बहुत गुस्सा आया। उसने गिलास में रखा पानी श्रीकांत के चेहरे पर छिडकया। उसने तुरंत ज़ोर से चिल्लाकर श्रीकांत को जगाया।
“क्या बकवास है, तुम्हें पता नहीं? मैं कल रात देर से सोया था। और अब तुम मुझे सोने नहीं दोगे।” श्रीकांत चादर से अपना चेहरा पोंछते हुए चिल्लाया, “हाँ, अब बताओ क्या कहना है। मेरी तो नींद ही उड़ गई है।”
“ओह, क्या तुम्हें अपनी सुलू आंटी याद हैं, जो तिजगाँव में हथकरघा के काम में निपुण थीं और साड़ियों पर खूबसूरत कढ़ाई करती थीं?” दिशा ने श्रीकांत को गरमागरम चाय का कप देते हुए कहा।
श्रीकांत ने ज़ोर से जम्हाई ली और चाय का कप हाथ में लेकर बोला, “हाँ, मुझे याद है मैडम, कल दोपहर तुमने फ़ोन पर भी यही बात कही थी। अब आगे क्या?”
“हाँ, तो चलो हम दोनों परसों, रविवार को उनके पास चलते हैं।” दिशा।

“सुलू आंटी के पास? और वो भी परसों? रविवार को?” श्रीकांत हैरानी से चिल्लाया, “ओह, ऑफिस में बहुत काम है। मुझे इस रविवार भी जाना है। और उस तिजगाँव जाने में तीन घंटे लगेंगे और वापस आने में भी उतना ही समय लगेगा।” रविवार की पूरी छुट्टी इसी में बर्बाद हो जाएगी।”

“ठीक है, वहाँ जाने के लिए कैब लेते हैं, कम समय में पहुँच जाएँगे।” दिशा।
“मैंने तुम्हें कैब से पहुँचने का समय बता दिया है। अगर तुम बस या ट्रेन से जाओगी, तो दो दिन लगेंगे।” श्रीकांत।
“ठीक है, हम सुबह 4 बजे कैब से निकलेंगे। तुम और मैं कैब में ही थोड़ी देर आराम करेंगे। सुबह 4 बजे निकलकर, हम सुबह 7 बजे सुलू आंटी के घर पहुँचेंगे और उसी कैब से सुबह 8 बजे मुंबई लौटेंगे। तब तक 11 बज जाएँगे। उसके बाद तुम ऑफिस जा सकते हो।”दिशा।

“अरे, लेकिन सुलू मासी से तुम्हारा क्या लेना-देना? कोरोना काल में अपने पति और बेटे की मौत के कारण वह बहुत अकेली हो गई हैं। उन्हें अकेलेपन से बहुत तकलीफ होती है। एक बार हम उनके पास चले गए, तो वह हमें जल्दी नहीं छोड़ेंगी। और मैं भी ऑफिस नहीं जा पाऊँगा।” श्रीकांत।

“हाँ, मुझे पता है। वो दिन भर साड़ियों और कपड़ों पर कढ़ाई करती रहती है क्योंकि वो अकेली रहती है। हमारे ऑफिस ने एक शॉपिंग साइट शुरू की है। अगर हम उसकी कढ़ाई की हुई साड़ियों और कपड़ों को ऑनलाइन बेचें, तो हमें अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है। और क्या तुम्हारे पास उसका कॉन्टैक्ट नंबर है?” दिशा।


“सिर्फ़ एक ही लैंडलाइन नंबर है। मुझे दिन में दस बार उसकी मिस्ड कॉल आती हैं। जब वो मुझे दस बार कॉल करती है, तो मैं उसकी एक इनकमिंग कॉल उठा लेता हूँ। उस पर वो मुझे अपने घर बुला लेती है। उसे अकेलापन बहुत सताता है। अगर मैं उससे मिलने जाऊँ, तो उसे ऐसा लगेगा जैसे उसका अपना बेटा घर आ गया हो। और वो अक्सर रोने लगती है। अगर मैं अभी उसके घर जाऊँ, तो वो जल्दी वापिस नहीं जाने देगी ।” श्रीकांत।
“इस बारे में चिंता मत करो। हम सुबह 4 बजे निकलेंगे। फिर हम ठीक शाम 7 बजे वहाँ पहुँचेंगे। और उसके बाद, हम ठीक एक घंटे में निकलेंगे। तुम मुझे उसका फ़ोन नंबर दे दो, मैं उसे कॉल करूँगी।” यह कहकर दिशा अपने और श्रीकांत के फ़ोन देखने लगी।

श्रीकांत के फ़ोन से सुलु आंटी का फ़ोन नंबर लेने के बाद, दिशा ने श्रीकांत को सोने के लिए कहा। और तुरंत खुद सुलु आंटी को फ़ोन किया, लेकिन दूसरी तरफ़ से सिर्फ बेल बज रही थी किसी ने उठाया नहीं । उसके बाद, दिशा दिन भर सुलु आंटी को फ़ोन करती रही, लेकिन दूसरी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया, सिर्फ़ घंटी बज रही थी। इसलिए उसने श्रीकांत को फ़ोन किया और फिर से उनका नंबर लेने की कोशिश की, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
श्रीकांत भी अपने मोबाइल से सुलु आंटी को फ़ोन कर रहा था, लेकिन उनसे भी संपर्क नहीं हो पा रहा था। फिर शनिवार को दोनों ने यही कोशिश की, लेकिन सिर्फ़ सुलु आंटी के फ़ोन की घंटी बज रही थी। इससे दोनों तनाव में आ गए। और तो और, श्रीकांत के पास एक सुलु आंटी के लैंडलाइन नंबर के अलावा किसी और का नंबर नहीं था। पहले उनके पास उनके बेटे और पति का फ़ोन नंबर था, लेकिन कोरोना में उनकी मौत के बाद, उनके नंबर बंद हो गए। और श्रीकांत ने उनसे संपर्क करने के लिए दूसरा नंबर नहीं लिया। अब श्रीकांत को इस बात का बहुत अफ़सोस हो रहा था। इसलिए उसने भी तय कर लिया कि इस रविवार को चाहे जो भी हो, वह सुलु आंटी से मिलने ज़रूर जाएगा।

आखिरकार, रविवार सुबह सात बजे, दोनों सुलु मावशी के पास पहुँच गए। सुलु मावशी अभी-अभी नहाकर बाहर तुलसी को पानी दे रही थी। उसे खुश देखकर श्रीकांत को बड़ी राहत मिली! उसने तुरंत ज़ोर से पुकारा, “सुलु मावशी।”
श्रीकांत की पुकार सुनकर सुलु आंटी के हाथ से पानी का लोटा गिर गया और वह दौड़कर श्रीकांत को गले लगाने चली गईं।
“अरे, क्या बात है सुलु मावशी? तुम तो मुझे रोज़ दस बार फ़ोन करती थीं, लेकिन पिछले दो दिनों से, जब मैं और दिशा, दोनों तुम्हें फ़ोन करते है, तो तुम्हारे फ़ोन की घंटी बजती रहती है।” श्रीकांत ने उसका आलिंगन छोड़ते हुए कहा।
“हाँ, सुलु मावशी, मैं भी तुम्हें फ़ोन कर रही थी। लेकिन बस घंटी बज रही थी,” दिशा ने सुलु मावशी के पैर छूते हुए कहा।

“अरे, मेरा फ़ोन बंद है। मैंने फ़ोन ऑफिस में शिकायत की थी, पर ये सरकारी अफ़सर इतनी जल्दी कैसे आएँगे?” सुलु मासी ने दिशा के सिर पर हाथ फेरा और कहा। “चलो, जल्दी से अंदर आओ, नाश्ता करते हैं। आज सुबह सफ़र में तुमने कुछ खाया ही नहीं होगा।”
सुलु मासी ने तुरंत गरमागरम पोहा बनाकर दिशा और श्रीकांत को दिया ।
“वाह, दिशा, मेरी सुलु आंटी बहुत अच्छा खाना भी बनाती हैं। अपनी शॉपिंग साइट पर उनके बनाए व्यंजन दिखाओ, तुम्हें उनके भी अच्छे ऑर्डर मिलेंगे।” श्रीकांत ने पोहा खाते हुए कहा।
“हाँ, बिल्कुल,” दिशा ने एक चम्मच पोहा खाने के बाद कहा, “सुलु मासी, तुम कढ़ाई बहुत अच्छी करती हो ना? मैं देखना चाहती हूँ। मुझे दिखाओ।”
“हाँ, आजकल मेरे पास ज़्यादा काम नहीं है, इसलिए मैं समय बिताने के लिए कपड़ों पर कढ़ाई करती हूँ,” यह कहते हुए सुलु आंटी ने एक भारी लोहे का ट्रंक खींचा और दिशा और श्रीकांत के सामने खोल दिया। ट्रंक में कढ़ाई वाले कपड़े देखकर दिशा को मानो बड़ा खजाना मिल गया!
“वाह, ये कढ़ाई कितनी खूबसूरत है!”, दिशा ने तुरंत अपने मोबाइल फ़ोन से तस्वीरें खींचनी शुरू कर दीं और अपनी शॉपिंग साइट पर अपलोड कर दीं।
“आंटी, मुझे ये कढ़ाई वाली साड़ी बहुत पसंद है, क्या मैं ले जाऊँ?” दिशा ने साड़ी कंधे पर रखकर आईने में देखते हुए कहा।
“हाँ, सिर्फ़ यही एक साड़ी क्यों? मेरे पास कढ़ाई वाले दुपट्टे और रूमाल भी हैं, वो भी ले लो। इस डिब्बे में ऐसे सौ-दो सौ कपड़े पड़े हैं, सब ले लो।” सुलु ने दुपट्टा दिशा के दूसरे कंधे पर रखते हुए कहा।
“ओह रियली ! आप को इस के कितने पैसे चाहिए?” ये कहते हुए दिशा ने अपने मोबाइल पर श्रीकांत को शॉपिंग साइट पर सुलु मांसी के कढ़ाई कीं हुई कपड़ो की दस हज़ार रुपये की बिक्री दिखाई।
“यह क्या बात है!, भला अपनों से कोई पैसे लेता है? ये सारे कपड़े मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए एक छोटा सा तोहफ़ा हैं!” सुलु।
“वाह, बहुत बढ़िया।” ये कहकर दिशा ने बाहर से कैब ड्राइवर को आवाज़ लगाई।
दिशा का ऐसा स्वार्थी व्यवहार देखकर श्रीकांत को बहुत गुस्सा आया। लेकिन दिशा ने उसको अनदेखा कर दियाऔर कैब ड्राइवर की मदद से ट्रंक को कैब की डिक्की में रखने चली गई,तभी श्रीकांत उसे गुस्से से घूर रहा था।
कुछ देर बाद श्रीकांत को होश आया और उसने सुलू आंटी से कहा, “आंटी, देखो मैं आपके लिए क्या लाया हूँ।”
“क्या है?” यह कहते हुए सुलू आंटी ने श्रीकांत का दिया हुआ डिब्बा खोला और उसमें देखा। “मोबाइल? अरे, मैं इसे इस्तेमाल नहीं कर सकती।”
“मैं तुम्हें अभी दिखाता हूँ, कि इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं। मैंने इसमें सिम कार्ड डाला है और इस गाँव में नेटवर्क भी अच्छा है।”

देखो मौसी,तुम इस फ़ोन से मुझे कभी भी वीडियो कॉल कर सकती हैं। और अगर तुम मुझे इस फ़ोन से वीडियो कॉल करेंगे, तभी मैं तुमसे बात करूँगा। वरना, मैं बात नहीं करूँगा।” यह कहकर श्रीकांत ने सिम कार्ड मोबाइल में डाला।
तभी दिशा वहाँ आई और बोली, “जी मौसीजी, अब हम चलते हैं और इसी फ़ोन पर आपको वीडियो कॉल करेंगे। आप इसे लेकर इस पर बात करें।”
“इतनी जल्दी! आप एक घंटे पहले ही आए थे और अभी जा रहे हैं?” सुलु मैडम ने पूछा।
“जी मैडम, श्रीकांत को ऑफिस में बहुत काम है। अगर हम अभी निकलेंगे, तो ग्यारह बजे तक पहुँच जाएँगे।” दिशा ने श्रीकांत का हाथ पकड़ते हुए कहा।
“लेकिन, कम से कम लंच के बाद तो जाना।” सुलु मैडम ने दिशा के कंधे पर हाथ रखा और विनती करने लगीं।
“मौसीजी, श्रीकांत को ऑफिस में बहुत काम है, हम आज नहीं कर पाएँगे। हम कार से आपको वीडियो कॉल करेंगे। वीडियो कॉल में तो ऐसा लगेगा जैसे हम सामने बैठकर बातें कर रहे हैं।” दिशा ने श्रीकांत का हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए कहा।
“अरे श्रीकांत, रुको। मैं आधे घंटे में खाना बनाती हूँ। तुम्हें मेरी बनाई हुई दाल-चावल बहुत पसंद है ना?” सुलु मासी श्रीकांत से विनती करने लगीं।
“श्रीकांत, चलो, आठ बज गए हैं। अगर हम अभी नहीं निकले, तो देर हो जाएगी,” दिशा ने श्रीकांत का हाथ पकड़कर उसे खिचते हुए कहा।
तभी श्रीकांत ने दिशा का हाथ छूडवाया और जोर से चिल्लाया, “चुप रहो, मैं अभी नहीं जा रहा। मैं आज यहीं लंच करके जाऊँगा।”
यह सुनकर सुलु मासी का चेहरा खुशी से खिल उठा, “बैठ जाओ तुम दोनों। मैं अभी खाना बनाना शुरू करती हूँ।” और सुलु मासी खुशी-खुशी रसोई में चली गईं। श्रीकांत उन्हें प्रशंसा भरी नज़रों से देखने लगे। और दिशा उदास मन से कुर्सी पर बैठ गईं।

समाप्त।

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